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कविता - मै हूं लक्ष्मी चंचल परी
कविता - मै हूं लक्ष्मी चंचल परी
- कविता - मै हूं लक्ष्मी चंचल परी
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- मैं हूं लक्ष्मी चंचल परी,
- मैं अपनी मनमर्जी की मालकिन ना किसी से डरी ।
- जिसके घर में हो सत्य के निवास वहां मैं आती हूं ।
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- झूठ का हो साया वहां से निकल जाती हूं।
- इधर- उधर मंडराती जहां ईमान की खुशबू आए वहां बैठ जाती हूं।
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- मुझे चाहने वाले अहम को बुलाते हैं ।
- लालच का नशा अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी चलाते है।
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- डगर - डगर चले कर्म करते ,
- उसके पास मै आने को तड़पती हूं ।
- सत्कर्म के पुण्य में जड़े खुशी से बरसती हूं।
- मुझे भी एक बात का दुख लगती है।
- जब इंसान बिना कर्म किए मेरे लिए तरसती है।
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- सबको देना चाहती हूं ।
- मैं कामचोरों से मजबूर हूं ।
- मै हूं लक्ष्मी चंचल परी बुराइयों से दूर हूं ।
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- मैं अपना पग धीरे धीरे बढ़ाती हूं।
- जो मेरे परीक्षा में हो सफल सज्जन मन,
- उसके यहां रहकर खुद को सहराती हूं।
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- जहां पर हो श्री हरि का वास ,
- वहां होती मेरी निवास।
- जो श्रद्धा भक्ति से पूजते है।
- वो धन्य -धन्य संपन्न घर भरते है।
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कवित्री प्रेमलता ब्लॉग एक कविता का ब्लॉग है जिसमे कविता, शायरी, poem, study guide से संबंधित पोस्ट मिलेंगे
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