एक थी सीता एक थी गीता।
सीता थी सीधी साधी भोली,
गीता घमंड से भरा अमीरी में जीती।
दोनों थी एक-दूसरे के विपरीत सीता के संस्कार से जलती थी गीता।
दिखाती थी उसे उनसे नीचा समाज के बीच गीता।
एक दिन की बात है सीता कबूतर खरीद रही थी
उसी समय गीता भी वहां पहुंच गई।
देखी उस कबूतर के सुंदरता को नयी।
सीता जो कबूतर खरीदी उसी पर नियत लग गई गीता की।
दुकानदार को सीता से ज्यादा पैसा देने की बात की।
दुकानदार बोला सीता पहले आई कबूतर को मांग की। गीता जिद पर अड़ गई
कबूतर लेकर ही जाने की ठान गई।
दुकानदार देख परेशान हो गया।
अब इस समस्या को कौन सुलझाए भैया।
सीता देख मुस्कुराई,
कबूतर को लिए अपने हाथों से सहलाई।
बोली हम इस कबूतर को छोड़ देते हैं।
इसके पैर में बँधा रस्सी को तोड़ देते हैं ।
जिसके पास यह जाएगा कबूतर वही इस को घर ले जाएगा।
अपने साथ रखेगा इसका मालिक कहलाएगा ।
गीता इस बात में हां बोला ।
दुकानदार सीता के उदारता देख कबूतर के पैर खोला।
कबूतर उड़ते हुए सीता के कंधे में बैठ उसके बालों से खेलने लगा।
गीता देख चूर चूर ईर्ष्या से जलने लगा।
सीता बोली नम्रता से पंछियों का भी दिल जीता जा सकता है ।
करुणा दया इनसे भी सीखा जा सकता है।
धन दौलत अमीरी ही सब कुछ नहीं होती है मन साफ उत्तम संस्कार जरूरी होता है।