कविता प्रेरणा- ईश्वर को तू जान रे बंदे

अंतर्मन में झांक रे बंदे , ईश्वर को तू जान रे बंदे।
कहां जाएगा मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वार तन में ही है ईश्वर धाम रे बंदे।
अंतर्मन में झांक रे बंदे...
दुनिया का तो भौतिक सुख रंगीन नजारा है।
अंतर्मन का आत्मज्ञान का सुख करके जीवन उजियारा है।
काम,क्रोध,मद,लोभ,मोह जीवन को न तबाह कर।
बहुत कर लिया पापाचार अब उस ईश्वर से भी डर।
अंतर्मन में झांक रे बंदे..
अज्ञानता के राह में पग - पग चला,
अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ईश्वर से छला।
अपने दुर्गुण का त्याग कर,
अंतर्मन में ज्योति प्रकाश भर।
अंतर्मन में झांक रे बंदे..
मत सोच दुर्जन कपटी मन बच जाएगा।
जैसा कर्म वैसा फल पाएगा।
अभी सम्हल जा बाद में क्या पछताएगा।
अकेला आया है अकेला ही चला जाएगा।
अंतर्मन में झांक रे बंदे..
मन साफ तो सब साफ़ ।
मन रोगी तो तन रोगी।
क्या सुखमय जीवन व्यतीत कर पाएगा भोगी।
योगी हो जाए बन जाएंगे निरोगी।
अंतर्मन में तू झांक रे बंदे..
सूर्य के समान प्रकाशवान,ज्ञान से दूसरों को प्रकाशित करें।
वहीं महात्मा है , अंतर्मन को जानने वाला पवित्र आत्मा है।
कभी सुबह कभी शाम प्रकृति का नियम है।
दीन - हिन राजा रंक देख - रेख करता यम है।
अंतर्मन में झांक तू झांक रे बंदे।
ईश्वर को पहचान रे बंदे।
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छत्तीसगढ़ी कविता- एक बार हार त दुसर बार म जीत हे।

एक बार हार त दूसर बार म जीत हे।
यही प्रकृति धरम के रीत हे।
मन के विश्वास ल मत हारय।
अपन जीवन म हार मत मानय।
गिरत गिरत चाटी तक अपन चारा ल पार कर डालथे।
जेन ह कोशिश करे बर भूलाथे वहीं हारथे।
दिन रात के बुता करिइया अपन मेहनत के फल पाथे।
दूसर के जांगर म पेट भरिइया जीवन भर ठोकर खाथे।
अपन ऊपर भरोसा करे म जीत हे।
अही कुदरत के रीत हे।
तन का आलस करे म निंदिया बैरी छा जाथे।
तन मन ल फुर्तीला रखे म करम अंजोर हो जाथे।
सामने ल देखत चल डगरिया पिछु मुड़े म हार हे।
आलस ल घेरबो त बुता काम लगही पहाड़ असन लगही भार हे।
टांग खींचइया के कमी नइ हे।
रद्दा म काटा बिछइया के कमी नइ हे।
अपन हौसला बड़ा के जिए बर हे।
रस्ता म आय काटा ल टारके जिए बर हे।
एके घ म सर्ग के तराई नइ मिलय।
तुरंत ताहि अमरइया म फर नइ लगय।
धीरे धीरे पाव ल उसलाना हे ।
कामयाबी के झंडा फहराना हे।
एक बार हार त दूसर बार म जीत हे।
अहि प्रकृति धरम के रीत हे।

छत्तीसगढ़ी - कविता

हमर परिवार बर कस बगरे डाल,जेकर हावय मूल जरी सियानी अवस्था ते कर होत हे बुरा  हाल।
मुंह माया म एक दूसर के बंधे रथे ।
हमर घर के सियानिन के मया सबो बर लगे रथे।
बोलथे पांच अगंठी हे पांचों बर पीरा हे।
अपन नाती नतनिन ल देखे बर तरसथे , बहथे आंखी के नीरा हे।
महतारी मन नांकुन ले पाल पोष के बड़े कर्थे ।
सियानी हालत हॉथे त ओ ई दाई ददा मन लईका के गुरतुर बोली सुने बर तरस्थे।
लइका ह सियानी के गोठ म खिसिया जाथे ।
अपन जहुरिया ल खोजे बर Facebook फोन म गोथियाथे।
वाह रे जमाना सियानिन सियान करा गोठियाय म मुंह पिराथे।
संगी साथी करा गपियाए म दिन रात पहाथे।

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कविता - आज अपन भगवान ल भुला गएन

आज अपन भगवान ल भुला गएन रे।
खोखरा तन के सुघराई म लुभा गएन रे।
अपन भगवान ल वादा करके आए रहेन ।
धर्म नीति के ज्ञान धरबो अपन वचन ल गवाए रहेन।
आज जीनगी विरथा परान होगे रे,
आज अपन भगवान ल भुला गएन रे।
खोज दारेन भगवान ल मस्जिद मन्दिर तीर्थधाम।
एती वोती भटकत हे ए जीव ह नई डराइस छाव घाम।
आज अपन अंतस के भगवान ल न खोज पायेन रे ,
आज अपन भगवान ल भुला गएन रे।
मुंह माया के जाल म फंस गईच तन के चिराईया।
दाई  ददा बनगे लईका सियान बगर गए अमरईया।
आज अपन जीनगी ल रोवा गएन रे।
आज अपन भगवान ल भुला गएन रे ।
अढ़ही अढ़हा बन गएन रेन्गत हन अंधियारी बेरा।
सबों ल जाए ल पड़ही एक दिन यम के डेरा।
आज अपन सोच म गरभ अभिमान बन गएन रे,
आज अपन भगवान ल भुला गएन रे।
 निंदा चारी चुगली म अपन जीनगी ल पहा डारेन।
सही रस्ता के चिन्हारू नई मिलिस अपन नियत ल डोला पारेन।
आज सगरी उमर ल पहा पारेन रे,
आज अपन भगवान ल भुला गएन रे ।
खोखरा तन के सुघाराई म लुभा पारेन रे।
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कविता - जीने की कला

जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।2

इंसानियत के नाते मानव - मानव में प्रेम जगाओ।
अहिंसा, सत्य , सत्कर्म का बीज लगाओ।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।

निडर होकर अपने तत्पर आगे बढ़ना।
सोनार चाहे कितनों घिसे सोने की तरह चमकना।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।

खुद पर विश्वास मंजिल की चाबी ।
मन में हौसला आगे बढ़ने की जज्बा मिलेगा कामयाबी।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।

मणि पूरे अंधेरे को प्रकाशित करता।
जब एक चमक लों जले ज्ञान का हमारे अंदर,
तभी अज्ञानता का भ्रम मरता।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।

दुनिया को अपनी हिम्मत दिखानी है।
सबसे अलग कुछ कर दिखाने की,
इस मकड़ी के जाल को,
 अंधेरी रात को जड़ से मिटाने की।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।

कुछ खोना है कुछ पाना है,तो कुछ आजमाना है।
इस दुनिया के पहेली को, सरलता से सुलझाना है।

जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।
हंसते हुए जीना है हंसाते हुए चलना।
भले ही कितनों पैर खींचने वाला सामने आए,
अपने सामने आए मुसीबतों से लड़ना।

जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।
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