छत्तीसगढ़ी कविता- एक बार हार त दुसर बार म जीत हे।

एक बार हार त दूसर बार म जीत हे।
यही प्रकृति धरम के रीत हे।
मन के विश्वास ल मत हारय।
अपन जीवन म हार मत मानय।
गिरत गिरत चाटी तक अपन चारा ल पार कर डालथे।
जेन ह कोशिश करे बर भूलाथे वहीं हारथे।
दिन रात के बुता करिइया अपन मेहनत के फल पाथे।
दूसर के जांगर म पेट भरिइया जीवन भर ठोकर खाथे।
अपन ऊपर भरोसा करे म जीत हे।
अही कुदरत के रीत हे।
तन का आलस करे म निंदिया बैरी छा जाथे।
तन मन ल फुर्तीला रखे म करम अंजोर हो जाथे।
सामने ल देखत चल डगरिया पिछु मुड़े म हार हे।
आलस ल घेरबो त बुता काम लगही पहाड़ असन लगही भार हे।
टांग खींचइया के कमी नइ हे।
रद्दा म काटा बिछइया के कमी नइ हे।
अपन हौसला बड़ा के जिए बर हे।
रस्ता म आय काटा ल टारके जिए बर हे।
एके घ म सर्ग के तराई नइ मिलय।
तुरंत ताहि अमरइया म फर नइ लगय।
धीरे धीरे पाव ल उसलाना हे ।
कामयाबी के झंडा फहराना हे।
एक बार हार त दूसर बार म जीत हे।
अहि प्रकृति धरम के रीत हे।

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