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नैतिक सायरी

*  नदी गतिशील , तभी रहता है शीतल जल।
    लगातार बिना रुके कार्य करें,तभी सुधरेगा                          कल।
     जिस तरह तालाब का शांत,पानी ज्यादा दिन नहीं रहता।
      उसी प्रकार बिना कर्म किए धन,अधिक दिन नहीं टिकता।

*   समय का पहिया न रुके भैया,कर्म करो फल न मिले तो न करो खेद।
      अपने कार्य समय पर ही कर ले, वरना ऐसा होगा।
      अब पछतात क्या होत,जब चिड़ियां चुग गई खेत।

*    आकाश में विचरते पंछी,और पिंजरे में बंद  पंछी।
       एक स्वछंदता का अनुभव कर रहा।
        एक गुलामी का रोना रो रहा।
       हम भी अपना जैसा समझे जीव जगत को,
       क्यों खिलौने का मोल ले रहा।

*      कोयल की मीठी वाणी सबको भाती है।
         कौआ की करकस आवाज उसे दूर भगाती            हैंैैंै
        इन दोनों का मेल हमें मीठी वाणी बोलने  का सिख सिखाती है।


मुझे अपने लेखन कार्य के लिए प्रेरित करने एवं मेरे द्वारा लिखी गई लेख को आगे बढ़ाने के लिए
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धन्यवाद




Life

                                Life
Life क्या है?
इससे कैसे सुधारें?
हमारी life का मूल मंत्र क्या है?

जीवन प्रकृति का मूल धरोहर है।जीवन के बिना प्रकृति और पृथ्वी दोनों अधूरा है। जीवन इस संसार की कसौटी है।अब कुछ महत्वपूर्ण बातों को समझते है। आखिर में जीवन क्या है।जड़ को चेतन कर दे अर्थात् इस शरीर रूपी खोखला तन में अपना बसेरा करता हो, वह जीव है।जिस जीव से यह शरीर कार्य करता है,वह जीवन है।जीवन का मूल मंत्र अाना - जाना है।अर्थात्  इस संसार रूपी दुनिया में आता है।कार्य सम्पन्न करता है,और फिर अपने जीव को छोड़ अपने धाम को प्रस्थान करता है। हमारे इस शरीर को चलाता है "परमात्मा"  जो हमें अपने साधारण आंखो से दिखाई नहीं देती। उदाहरण-  किसी घर का एक मुखिया होता है।जो अपने बाल गोपाल के भरण-पोषण के लिए अपना उत्तरदायित्व संभालता है। ठीक उसी प्रकार परमात्मा जो हमारे  भरण पोषण करता है। और कर्म के अनुसार हमें फल देता है। एवं हमारे कार्य को उचित अंजाम देता है। ईश्वर सर्वायपी होता है। हमारे शरीर के अंदर परमात्मा निवास करता है।आत्मा जो ईश्वर का अंश होता है यह अपना निर्णय स्वयं करता है इसे कोई किसी से भेदभाव भी नहीं। अपनी शरीर रूपी तन से निवास करता है ।और एक वाहन की तरह कार्य करता है जब तक वाहन में पेट्रोल हो तो वह कभी भी चला सकते है। पेट्रोल नहीं होगा तो चलना बंद हो जाएगा।उसी प्रकार यह जीवन शरीर को ऊर्जा देती रहती है।और उम्र ढल जाने पर ऊर्जा देना बंद कर देती है।जीवन,जीव जगत का अमूल्य उपहार है।
जीवन के दो पक्ष होते हैं-
 1. कर्म
2.कर्तव्य
1. कर्म - जीवन अपने कर्मों को अच्छा बनाता है। अपने मन को साफ और निर्मल रखता है।  उसे किसी भी प्रकार के भय से डर नहीं लगता, क्योंकि जीवन को या आत्मा को पता है। इस नाशवान शरीर का अंत जरूर होगा। और जिस मनुष्य के जीवन भयभीत है, मृत्यु से डर लगता है ,वह कभी शांत नहीं रहता। उसका मन अपवित्र हो जाता है। तथा आत्मा अशांत हो जाता है। जिस शरीर का आत्मा शांत रहता है ।वह परमपिता परमेश्वर को प्राप्त होता है।

2.कर्तव्य- यह नाशवान तुच्छ शरीर अपने कर्तव्य को विधि-विधान से पालन करता है। और जो नीति- धर्म से अपने कर्तव्य को सच्चा बनाता है।वह इस जीवन को सार्थक करता है ।
जीवन का मूल मंत्र-   कर्म सही, कर्तव्य परायणना भी है ।इस जीवन को किसी भी प्रकार के मोह नहीं,पाप नहीं । सब में स्वच्छंद, निर्मल,पवित्र होती है।जीवन का चाह भी है।कि वह परमात्मा का शरण प्राप्त करें ।लेकिन माया रुपी संसार ने भ्रमित कर रास्ता भटका देता है ।फिर भी परमात्मा अपने अंश को भटकते देख उसे हर तरह के संकेत देता रहता है।लेकिन हम समझ नहीं पाते हैं।
हमें खुद का पता नहीं रहा नहीं रहता, कि हम कौन हैं ?
क्या है ?
कैसे हैं ?
जिस प्रकार नदी में बहते जल में मछलियां तैरती रहती जाती है।लेकिन उन्हें पता नहीं कि हम कहां जा रहे हैं। उसी प्रकार हमारे जीवन का दौर चलता जा रहा है ।और यह पता नहीं कि कहां जाएगा। इस शरीर का महत्व भी नहीं जानते कि कितना अमूल्य है। बस समय व्यतीत करते रहते हैं। सोचते हैं कि किस्मत कहीं भी ले जाए , जैसा भी हो अच्छा ही होगा ।लेकिन हम अपने जिंदगी को रंगीन करना भूल जाते हैं।
हम अपने शरीर को सही राह नहीं दिखाते ताकि वह रास्ते भटके मत। किसी गड्ढे में जाकर गिरते हैं तो पता चलता है। कि हम नेत्रहीन की तरह चल रहे थे। इसलिए गिर गए ।यह तो सरल बात  हो गया। हम तो अपने जीवन रूपी आत्मा को जागते ही नहीं है। ज्ञान इंद्रियां बढ़ाते ही नहीं है।
इसलिए जीवन अज्ञानता की ओर बढ़ता चला जाता है। और जब ज्ञानेंद्रियां खुलता है। तो पता चलता है कि हम नेत्रहीन थे।और जब ज्ञान का अनुभव होता है।तब दिशा खुद ही निर्धारित कर लेते हैं।जब दिशा का ज्ञान होती है तो सुख का अनुभव  होता है।
मन स्थिर हो जाती है।आत्मा पवित्र और निर्मल हो जाता है।प्राचीनकाल के मुनि  - महात्माओं ने वन में रहना अधिक पसंद करते थे। क्योंकि वे मोह - माया से दूर ,वन में रहते थे। छोटा - छोटा आश्रम हुआ करता था। वह पर अनेक प्रकार के फूल - फल इत्यादि। सौंदर्य से मनोरमा थे। मुनि महात्माओं ने अपने जीवन को सफल बनाने के लिए तप - जप  साधना किया करते थे। और वन में रहने के वजह से उनका विचार शुद्ध हुआ करता था। क्योंकि शांत वातावरण में हर एक प्राणी स्वयं को साफ - सुधरा महसूस करते थे ।

इसलिए महात्माजन वन में ही रहकर अपना जीवन व्यतीत करते थे। साथ मैं पुण्य प्राप्ति के लिए जनकल्याण का मार्गदर्शक हो जाते थे। तथा भेदभाव सही नीति धर्म का ज्ञान सिखाते थे। ताकि जीवन -जगत का उद्धार हो सके। अपने ध्यान को केंद्रित करने के सबसे अच्छा साधन है ।साधना,योग ।इससे हम अपने आत्मा को शांत पवित्र सकते हैं ।जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाई आती है।

इस कठिनाई को सरल बनाके जिए।  तभी कांटा सुंदर खुशबू देने वाला फूल का रूप लेगा।हमें अपनी भविष्य की चिंता नहीं करना चाहिए। क्योंकि वर्तमान को अच्छा बनाओ ,भविष्य अपने आप चमक जाएगा। हम अपने भविष्य मंगल जीवन की चिंता करके अपनी एक चौथाई उर्जा उसी में खर्च कर देते हैं ।जीवन को सफल सफल बनाने के लिए मेहनत और शुद्ध विचार  जरूरी होता है ।शुद्ध विचार तभी होगा,जब हमारी मेहनत रंग लाएगी। तथा मंजिल किनारा नजर आ जाएगा।जीवन में अपने लगन, प्रयास को कमजोर नहीं करना चाहिए।

जिस प्रकार चींटी अपने कामयाबी का प्रयास नहीं छोड़ती।उसी प्रकार हमें अपने कैरियर बनाने के लिए हमेशा तत्पर होनी चाहिए। जीवन में धीरज का भी बहुत बड़ा योगदान है ,बुजुर्ग लोग एक कहावत कहते हैं- दिल से खीर है। हम लोगो के जीवन इतना गतिशील है। कि संतोष का महत्व भी भूल जाता है। इंसान कोई भी वस्तु को पाने के लिए अति शीघ्र रहता है।संतोष से काम नहीं लेता है ,फलस्वरूप जो कि आता हुआ धन भी दूर चला जाता है। इसलिए धीरज से काम लेना चाहिए।

हर इंसान का सोच अलग अलग होता है।रास्ता भी अलग -अलग होती है।लेकिन मंजिल एक ही होता है। बस इतना अंतर होता है सोचने और समझने की क्षमता भिन्न-भिन्न हो जाता है। इसलिए जिसका माइंड तेज होता है।वह अपने रास्ते पर अग्रसर रहता है।लेकिन जिनमें दिमाक कम चलता है। वह थोड़ा सा रास्ता फिसल जाता है। और आंख खुलते ही होश आ  जाता है। इस जीवन की कसौटी इतनी  लंबी है,   कि रास्ते पर चलना कठिन हो जाता है।और जो रास्ते पर चलना सीख जाए तो विजेता कहलाता है। जीवन की भागदौड़ में हरदम मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। आत्मा हमेशा परमात्मा से मिलने का तरकीब लगाता रहता है, ताकि वह परमपिता परमेश्वर की शरण पा सके जब हम इस छोटी सी जिंदगी के साथ इस दुनिया में आते हैं। तो हम सब से अनजान रहते हैं  हमारी आत्मा शुद्ध एवं पवित्र तथा इस दुनिया को जानने पहचानने के लिए रिश्ता मोह माया में जुड़ जाते हैं। अपने अस्तित्व को भूल जाते हैं।


सेहतनामा


ठंड से होने वाली सर्दी जुकाम के घरेलू नुस्के।




1) हमें उबालकर पानी पीना चाहिए।

2) अदरक , लौंग, काली मिर्च, तुलसी के  पत्तों को एक गिलास जल में  उबालकर , उसे आधे कफ जितना करके सुबह शाम सेवन करना चाहिए।

3) अगर लगातार बुखार आए 7 दिन से ज्यादा हो जाए तो तुरंत डॉक्टर के पास संपर्क करना चाहिए।

4) मच्छर के काटने से बचना चाहिए।

5) नीम के पत्तों को सुबह शाम थोड़ी थोड़ी मात्रा में जल के साथ उबालकर उससे रस निकालकर पीना चाहिए।

6) गले में  खराश हो तो लौंग को चबाना और उसके रस को खुटते रहना चाहिए।

7) जब किसी के मुंह से बदबू आने lage तो थोड़ी सी जीरा लेकर उससे चबाते रहना चाहिए। जिससे बदबू आनी बंद हो जाएगी।

8) अगर किसी के बाल लगातार झड़ रहे हो तो वह
 नारियल तेल में विटामिन ई के कैप्सूल मिलाकर उससे बालों में 
बाल के जड़ों तक हल्के हाथ से लगाना चाहिए।जिससे बाल झड़ना कुछ हद तक बंद हो जाएंगी👍