कविता - मजदूर


 आखिरी सांस तक लड़ेंगे हम।

चाहे कुछ भी हो जाएं न रुकेंगे हम।

अपने हक के लिए आवाज लगानी।

मजदूर की कीमत है समझानी।


एक एक दाना के लिए पूरे दिन कमाते।

फटी बनायाई फटी चादर से कैसे काम चलाते।

एक एक बूंद पसीना को सींचते है मजदूर।

फिर भी ज्यादा काम कम कमाई सह लेते है मजदूर।


छोटे छोटे बच्चे को अकेले छोड़।

दूर से बच्चे की आवाज को देख मुंह मोड़।

काम की लत में फंस जाते है मजदूर।

थोड़े से पैसों से परिवार कैसे चलाते है मजदूर।


महंगी वस्तुएं महंगी सब्जी समान।

महंगी हुई कपड़ा और दुकान।

जिधर से लाए कमा के ,

उससे ज्यादा खर्चा उठाते है मजदूर।


फिर तबियत खराब हुई तो ,

ब्याज से पैसा उठाते है मजदूर।

खाना पीना एक बराबर ,

कैसे ब्याज चुकाते है मजदूर।


दिन दिन मुश्किल बड़े कैसे दिन बिताते

है मजदूर ।

अपने गम छुपा कर कैसे दिल बहलाते है मजदूर।

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कविता - मन बावरे


 सुख की खोज में दर दर भटके मन बावरे।

थोड़ी सी मुस्कान के लिए पार हो गए दायरे।

न कभी चाहत मिटती, न कभी जीभ थम जाती।

न ही कोई सेवा की भावना, जो गलती दब जाती।

विश्वास किस किस पर करे न ही कोई समझ पाती।

जिस पर यकीन करें वहीं सांप जैसा फन फैलाती ।

आता नहीं समझ क्या करें सांवरे।

दे दे कोई सबूत नियत का भटके न मन बावरे।

राहत की सांस अब कहां लेना चाहती।

जहां भी जाएं ठोकर ही खाती।

चुन चुन फूल ले उड़ाती।

जब होश आए तो समय बीत जाती।

अब हार गए तन सांवरे।

फिर भी रुख (पेड़) न  बदले मन बावरे।

सुख की खोज में दर दर भटके मन बावरे।

अब हम थक चुके आकर सहारा दे सांवरे।


सायरी- एहसास दिल की


1) एहसास मेरे प्यार की एक दिन तुझे हो जाएगा।

    मेरे ही ख्याल में डूबना दूर जाएंगे तो बहुत पछताएगा।


2) धड़कन बोलती है तेरा नाम,

    सांस भी तेरे नाम की चलती है शुभ शाम।

    प्यार से अपना बना लो,

    अब तो हर तरफ दिखे तेरा ही छवि मेरी जान।


3) तुझे अपना बनाने की अरमान जगी दिल में,

    कहां छिपा बैठा है किसी बिल में।

    एक झलक तो दिखला ,

    सजा लूंगी तुझे अपने महफिल में।


4) देखते रहते है तेरी दहलीज में,

    झांकते रहते है अपने दिल के महफिल में।

    एक बार अपना बना के देखो,

    छुपा के रखेंगे अपने दिल की दहलीज में।

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कविता - महात्मा गांधी


 करमचंद गांधी का दूसरा नाम महात्मा गांधी थे।

नहीं आने दी भारत माता पर जुल्म की आंधी थे।


नरम दल के नेता थे वो,

अहिंसा के देवता थे वो।

स्वतंत्रता के पथ पर बड़े रहे,

हर मुश्किलों का सामना कर डटे रहे।


दांडी यात्रा कर जन-जन को जगाया,

विदेशी वस्तुओं को खुलेआम जलाया।

नम्रता थी उनकी आंखों पर,

स्वतंत्रता की ज्योति थी उनके सांसो पर।


छुआछूत को दूर भगाया,

इंसानियत का पाठ पढ़ाया।

शर्मीले स्वभाव शादगी के साधक थे।

मन,कर्म,वचन,अटूट बुराइयों के लिए पावक थे।


नहीं सहने दिए अंग्रेजों का अत्याचार,

नाकामयाब करते गए अंग्रेजों का विचार।

अपनी इच्छा के पक्के भारत माता के बेटा था।

अहिंसा के देवता नरम दल का नेता था।


देवी पुतलीबाई का बेटा था।

सबके दिलों में बैठा था।

मोहनदास करमचंद गांधी का बेटा था।

जो स्वतंत्रता की मांग के लिए अंग्रेजों से ऐठा था।

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कविता - सीखे




कविता - सीखे




राहों में अकेले चलना सीखे।

तूफानों से लड़ना सीखे।

आगे आगे चलना सीखे।

शेर की दहाड़ में बढ़ना सीखे।


गतिशील नदियों के चलना से सीखे।

कछुए की धीरे चाल से चलना सीखे।

चालाकी से बोलना सीखे।

बच्चों की तरह नम्र रहना सीखे।


फूलों की तरह खिलना ।

भोरें की तरह गुनगुनाना सीखे।

मेहनत का फल खाना सीखे।

ऊंची उड़ान को पाना सीखे।


भटके को राह दिखाना सीखे।

अपनों का प्यार निभाना सीखे।

झुके वृक्ष के जैसा परोपकार होना सीखे।

गलतियों को स्वीकार करना सीखे।


बादल की तरह गर्जना सीखे।

मौसम की तरह बरसना सीखे।

छिपकली की तरह रंग बदलना सीखे।

हार कर भी सम्हलना सीखे।


जीत को हासिल करना सीखे।

संघर्ष कर परिस्थितियों से लड़ना सीखे।

दूसरों को प्यार करना सीखे।

प्रकृति का ख्याल रखना सीखे।

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धन्यवाद