रूपा
विषय - इसमें एक युवती कन्या कि समझदारी का वर्णन है।
एक गांव में रूपा नाम कि लड़की थी ।वह अत्यंत बुद्धिमान एवं सभी कलाओं में पारंगत थी।रूपा की उसके मां के सिवाय दुनिया में कोई नहीं था। वह अपनी मां की खूब सेवा करती और उससे बहुत प्यार करती थी। उसकी मां रोज काम में जाती थी । रूपा युवती थी।इसलिए उसके घर में कोई न कोई उसे देखने के लिए आया करते थे।
किन्तु रुपा और उसकी मां गरीबी की परिस्थिति से सामना कर रहे थे।जिसके कारण मेहमान आते देखते और चले जाते थे।कोई उससे शादी के लिए नहीं बोलते थे। सबकी अपनी अलग - अलग मांग थी कोई गाड़ी मांगते तो कोई सोने की अंगूठी इस तरह से उनकी दिन गुजरती गई । उसकी मां बहुत दुखी थी । कि कब अपनी बेटी का हाथ पीला करें।एक दिन की बात है रूपा रोज की तरह अकेली घर में थी ।उसकी मां काम में चली गई थी।उसके घर मे दूर गांव से बहुत अच्छे घर के मेहमान आए।
लड़का बहुत शुशील एवम् पढ़ा - लिखा चतुर था। उसके पापा चाचा, चार - पांच रुपा को देखने आए । सभी मेहमान बाहर में बैठे थे । रूपा घर अंदर में सबके लिए चाय बनाकर लाई। सभी चाय पिए ।लेकिन मेहमान दूर से आने के वजह से थक गए थे । और उन्हें तेज भूख लगी थी। तो रूपा को खाना बनाने के लिए बोले। रूपा सोच में डूब गई की राशन समाप्त है । क्या करूं? फिर उसने अन्दर में कुछ ढूंढने लगी मानो कुछ छुपाई हो। एक टुखनी में चावल स छाटा हुआ धान को लाई ओर उसे कूटने के लिए तैयार हो गई। वह हाथ के कंगन को निकाल दी ताकि बाहर आवाज न आए। उसके बाद धान कूटकर चावल साफ करके खाना बनाने लगी। अब सब्जी बनाने के लिए सब्जी की तलाश की तो मिर्चा नहीं था । और कुछ सब्जी भी नहीं थी । तो उसने अपनी लगाई हुई छोटी मिर्ची या काली तीखी मिर्च को तोड़ ली । वहीं पर छोटी टमाटर कंदा भाजी तोड़ ले आयी। फिर स्वादिष्ट खाना बनाकर तैयार कर ली। अब अतिथियों को अंदर बुला खाना के लिए बैठाकर भोजन कराई । मेहमान को पता भी नहीं चला कि उसके घर में राशन का समान नहीं था। इस प्रकार रूपा आए अतिथियों का दिल जीत ली। और उसे पसंद कर धूम - धाम से शादी किए । रूपा की मां के आंखो में खुशी के आंसू छलक आए।क्योंकि जितना वहीं सोची नहीं थी उससे अच्छा उसे दमांद मिल गई थी।
और बोली सच में सब्र का फल मीठा होता है।
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