जिंदगी की लेखा - जोखा
- जिंदगी की लेखा जोखा में कर्म की गति भूल जाते हैं।
- जब कर्म को सामान ना हो तो गंदी आदतों में घुल मिल जाते हैं।
- जिंदगी एक क्षण को कुछ और दूसरे क्षण में कुछ और हो जाती है।
- जो हरदम खुशी की तलाश में भागे अनसुलझे गेम को साथ पाती है ।
- लगन प्रयास से गेम सुलझ जाए तो थोड़ी खुशी मिल जाती है ।
- दो मिनट की खुशी तीसरे मिनट में दूसरी अनसुलझे गेम दे जाती है।
- जिंदगी की अनसुलझे गेम को खुद वक्त सुलझाती जाती है ।
- अच्छे कर्म की हवस शुद्ध मन लहराती है ।
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- खुद की कर्म ही सही गलत का लेख लिखती है।
- सोए हुए मन को मार कर जगाती है ।
- लेखा-जोखा में फंसे जिंदगी की तिनका।
- जग मनोहर में मोहित हो जाती है।
- अपनी मंजिल की राह छोड़ वन में भटक जाती ।
- कोई हमेशा रो नही सकती।
- न कोई हमेशा हंस नहीं सकती है।
- अति की मार छोटी सी जिंदगी विचलित रह सकती है ।
- जिंदगी की भूल भुलैया में सबको सुलझाना पड़ता है।
- जो कभी हार ना माने वही अपनी जीवन लड़ता है ।
- एक गेम के दो खिलाड़ी दोनों जीतना चाहता है।
- जो हर मुश्किल को सामना आसान बनाए वही मंजिल या विनर कहलाता है ।
- जिंदगी की लेखा जोखा में सब सहना पड़ता है ।
- दुश्मनों को गले लगाकर उसके साथ ही रहना पड़ता है।
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