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कविता - पंछी की हौसले के उड़ान

        कविता - पंछी की हौसले के उड़ान

कविता पंछी की हौसले की उड़ान जो सोच बदल  कवित्री प्रेमलता ब्लॉग एक कविता का ब्लॉग है जिसमे कविता, शायरी, poem, study guide से संबंधित पोस्ट मिलेंगे



हौसला बुलंद उड़ती पंछी अपनी राह चली।

मंजिल को पाने की ललक मची एक हलचली।

फड़फड़ाते रही तूफानों की लहर में,

मन की विश्वास न टूटी अंधेरी घटाओं  के डहर में।

उड़ते - उड़ते अपनी मार्ग बनाते गई।

अंधेरों को बहारों की उजालों में सहलाते गई।

दोनों पैर के पंजे मजबूती से डटे रहें।

पंख की उड़ान तूफानों को चीरते बड़े रहे।

पहाड़ों की चोटी देख अहम से मुस्कुराएं।

अपने विशाल काया देख इतराएं।

पंछी की उड़ान आकाश को चूमने लगी।

छोटी हुई तो क्या हुआ गगन में उड़ने लगी।

विशाल तेरा काया तू स्थिर रहा।

न चलने की मजा न उड़ने में तेरा काया सहा।

पहाड़ ये पक्षी से सुन सर्म से सिर झुकाएं

अपने अहम को छोड़ पंछी को राह बताएं।

पंछी ने नदी किनारे प्यास बुझाई ।

अपने पंखों की नीर जल से सहलाई।

पंछी का मंजिल किनारा था घर।

ढूंढने से मिल जाती है हर मुश्किल का हल।

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उड़ान


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