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Biosynthesis of ovarian hormones

 Biosynthesis of ovarian hormones 

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- स्त्रियों में अंडाशयी दो की संख्या में उदरगुहा के निचले तरफ के हिस्से में गर्भाशय के दिनों तरफ उपस्थित होती है।इसका प्रमुख कार्य अंडाणुओं को बनाना होता है। पुटिका कोशिकाएं तथा corpus luteum व कुछ हार्मोन्स का भी स्त्राव करते है, जो एड्रीनल कॉर्टेक्स के समान होते है।

स्त्रियों का अंडाशय निम्नलिखित हार्मोन्स का स्त्रावण करते है -

1) Estrogen - यह हार्मोन अंडाशयी पुटिकाओं की गुहा को घेरने वाली कोशिकाओं  द्वारा स्त्रावित होते है।ये अंडाशयी गुहा में भरा होता है। और परिपक्व अंड के विसर्जन के साथ साथ देहगुहा में पहुंचता है। यह हार्मोन लड़कियों के द्वितीय लैंगिक लक्षण के विकास को प्रेरित करता है। इसके प्रभाव से लड़कियों में Uterus,Vagina,Clitoris, स्तनों का विकास , बगल तथा जघन जगह में बालों का उगना, body में वसा के जमाव के कारण चिकनाहट , विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण, रजोधर्म का प्रारंभ होना आदि क्रियाएं नियंत्रण की जाती है। अर्थात् इसके कारण लैंगिक परिपक्वता आती है ।

कमी :- इसकी कमी से लड़कियों में जनन क्षमता का विकास नहीं हो पाती और ये जनन के लिए अयोग्य हो जाती है। वयस्कों में इसकी कमी होने पर ऊपर में वर्णित लक्षण समाप्त हो जाते है। कम उम्र में ही Menopouse हो जाती है। अत: इसकी प्रजनन क्षमता समाप्त हो जाती है।

अधिकता:- इसकी अधिकता से कम उम्र में ही द्वितीयक लैंगिक लक्षण बन जाते है। और लड़कियां प्रजनन के योग्य हो जाती है।

इस हार्मोन का नियंत्रण पीयूष ग्रंथि के दो हार्मोन F.S.H. और L.H. करते हैं।

2) progesterone:- यह हार्मोन कार्पस ल्युटीयम

का निर्माण रजोधर्म प्रारंभ होने के 14 दिन बाद होता है।और इसके निर्माण का नियंत्रण पीयूष ग्रंथि के L.H. करता है। प्रोजेस्ट्रॉन गर्भाशय को निषेचित अंड को ग्रहण करने के लिए तैयार करता है।साथ ही यह गर्भधारण के बाद गर्भाशय तथा अंडे की दीवार में संबंध बने रहने के लिए प्रेरित करता है, गर्भधारण के बाद यह स्तनों के विकास को भी नियंत्रित करता है।


 निषेचन हो जाने की स्थिति में यह उपयुक्त कार्यों को कहता है और नयी अंडाशयी  पुटिकाओं के निर्माण को रोक देता है। इसके परिणामस्वरूप रजोधर्म बंद हो जाती है ।

लेकिन जब निषेचन नहीं हो पाता है तब कार्पस  ल्यूटियम नष्ट हो जाता है। और रजोधर्म पुनः पहले के 26 से 28 दिन के बाद प्रारंभ हो जाता है और स्तन व गर्भाशय अपनी प्रारंभिक स्थिति में आ जाता है।

3) Relaxin:-

गर्भावस्था में अंडाशय, प्लेसेंटा तथा गर्भाशय की कोशिकाओं इसका स्त्रावण करती है ।

यह हार्मोन प्यूबिस सिंफिसिस को ढीला कर देता है, जिससे योनि मार्ग चौड़ा हो जाता है, प्रसव के समय यहां Cervix की पेशियों के संकुचन को प्रेरित करता है, जिससे यह चौड़ी हो जाती है और प्रसव में आसानी होती है। प्रोजेस्टेरोन और Relaxin की कमी से प्रसव तथा गर्भधारण में कठिनाई होती है और गर्भधारण के बाद स्तनों में दूध का निर्माण ठीक से नहीं हो पाता। प्रोजेस्टेरोन की अधिकता होने पर स्तनों का विकास ज्यादा हो जाता है और कभी- कभी उनमें दूध भी इन बनने लगता है।  Relaxin की अधिकता होने पर गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है।

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