लचीली कानून
आज की कानून अजीबों से हो गई है।
हर एक नियम कायदा लगती नई है।
डूब्लिकेट सर्टिफिकेट बन जाते है एमबीबीएस।
मरीजों पर होती अत्याचार न होती कोई केश।
शराबी इंसान खुले आम दारू पीकर हंगामा खड़ा करता है।
बिना गलती के इंसान को मारता लड़ता फिरता है।
पब्लिक देखते रह जाती है ।
एक बूंद आंसू किसी की न बह जाती है।
मर्डर सबके सामने किया जाता है।
देखने वाला भी अंधा कहलाता है।
कैसी समाज की व्यवस्था है।
कमजोर भले इंसान की हो रही दुर्दशा है।
हमारी कानून कच्ची होती जा रही है।
पैसों वाला की मस्ती होती जा रही है।
गरीबों का राशन अमीर खाता है।
जमीन भी जबरदस्ती कब्जा कर मोज उड़ाता है।
कानून कैसी बदलती जा रही है।
लचीली इरादे चंचलती होती जा रही है।
गरीबों की कल्याण के लिए कोई नियम बनाता।
फायदा दलाल कोई और उठाता।
न्याय की मुट्ठी बंधी पड़ी है।
न्याय की देवी हंसी खड़ी है।
लचीली कानून कैसी दिन दिखाई है।
महंगा वस्तु पानी भी कीमत में बिक आई है।
कुटीर उद्योग की विलुप्ति की विचार पर है।
प्रदूषण से भरी कारखाने उन्नति के कगार पर है।
बहुमूल्य वन उजड़ गई।
कारखानों की बस्ती बिखर गई।
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