कविता - भ्रष्टाचार आज भी जिंदा है
भ्रष्टाचार आज भी जिंदा है ।
बाज की तरह मंडराता हुआ परिंदा है ।
भ्रष्टाचार दिमक की तरह हमारे देश को खोखली करती जा रही ।
अपनी झोली भरे दूसरों की जिंदगी को खोखली करती जा रही।
कालाबाजारी गबन, रिश्वतखोरी,
ऊंचे पद पर बैठे नेता उस में लिप्त बने अघोरी।
स्वार्थ सिद्धि की कामना लालच भरी नगरी और भी जन-जन में बिखर रही ।
भ्रष्टाचार की कहर समाज की अंग बन निखर रही।
राजनीति भ्रष्टाचार की पर्याय बन गई।
न्यायाधीशों के लिए पक्षपातपूर्ण निर्णय की संचाय बन गई ।
नौकरी पाने में भी घूसखोरी ।
करते अन्याय और सिना जोरी।
पीठ पीछे वार ,
गरीबों की छीनते घर द्वार।
चिकित्सों में भी डूबलीकेट दवाइयों को बेचना।
आम जनता को बेवकूफ बना ,
उनकी जिंदगीयों से खेलना ।
आज भ्रष्टाचार में लत लग गई ।
दिन गुजरता शराबियों की मत लग गई ।
हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार की बढ़ोत्तरी हो रही।
घर परिवार टूट महंगाई की दुनिया लौट रही।
लूटमार की दरवाजा खुल गई।
न्यायपूर्ण जीवन भूल गई।
दुकानों में भी बड़ा चड़ा समान बेचते।
मानों कोई हाथ लपकी का गेम खेलते।
मुजरिम पैसा भर आजाद घूमता।
रोजी मंजूरी गरीबों का हक छीनता।
भ्रष्टाचार को दूर भगाओ।
न्याय पूर्ण भारत संविधान बनाओ।
हम जागेंगे तभी भ्रष्टाचार मिटेगा।
भारत एक बार फिर भ्रष्टाचार विमुक्त खिलेगा।
जय हिंद जय भारत जय छत्तीसगढ़
🙏
भारत माता हमारी शान है।
इसकी सुरक्षा करना हमारी धर्म अभिमान है।
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