कविता - कलयुग घेरा बैठा
कलयुग घेरा बैठा।
अपनी जिद में मनफेरा ऐंठा।
घर-घर की कहानी ।
कभी झगड़ा कभी सुहानी।
कलयुग अपना प्रकोप दिखा रहा ।
अपने प्रकोप में सबको भीगा रहा ।
कलयुग के प्रभाव से राजा परीक्षित थी रोया था ।
अपने धर्म का बीज सबके दिलों में बोया था ।
जुआ , मदरा,निंद्रा , शयन , सोना पांच कलयुग का बसेरा ।
हम जागेंगे तभी होगा सबेरा ।
कलयुग अपना जाल बिछाया।
काली घटा बनकर मंडराया ।
कलयुग घेरा बैठा ।
अपनी जिद में मनफेरा ऐंठा।
घर घर की कहानी।
कभी झगड़ा कभी सुहानी।
अत्याचार ने बढ़ाया कदम ।
जागे कलयुग से लड़ने में हो सक्षम।
सदाचारी भी इसके प्रकोप में आ रही।
धीरे - धीरे धरती भी डगमगा रही।
कलयुग घेरा बैठा ।
अपने जिद्द में मन फेरा ऐंठा।
कवित्री
प्रेमलता साहू
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