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कविता - कलयुग घेरा बैठा

 कविता - कलयुग घेरा बैठा

कलयुग घेरा बैठा


कलयुग घेरा बैठा।

अपनी जिद में मनफेरा ऐंठा।

 घर-घर की कहानी ।

कभी झगड़ा कभी सुहानी।


 कलयुग अपना प्रकोप दिखा रहा ।

अपने प्रकोप में सबको भीगा रहा ।

कलयुग के प्रभाव से राजा परीक्षित थी रोया था ।

अपने धर्म का बीज सबके दिलों में बोया था ।


जुआ , मदरा,निंद्रा , शयन , सोना पांच  कलयुग का बसेरा ।

हम जागेंगे तभी होगा सबेरा ।

कलयुग अपना जाल बिछाया।

 काली घटा बनकर मंडराया ।


कलयुग घेरा बैठा ।

अपनी जिद में मनफेरा ऐंठा।

 घर घर की कहानी।

 कभी झगड़ा कभी सुहानी।


अत्याचार ने बढ़ाया कदम ।

जागे कलयुग से लड़ने में हो सक्षम।

सदाचारी भी इसके प्रकोप में आ रही।

धीरे - धीरे धरती भी डगमगा रही।


कलयुग घेरा बैठा ।

अपने जिद्द में मन फेरा ऐंठा।



कवित्री 

प्रेमलता साहू

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धन्यवाद🙏💐💐💐💐💐💐💐


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