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कविता-प्रकृति का वर्णन

काली घटा छाए बदरिया , दिखे घुघरालू बाल सवारियां।
गरज-गरज चलते इन्द्रधनुष ,लप -लप करते गगन चमकीला।
उछल-उछल कर खेलते आसमा , दिखे रंगीला।
सुंदर नजारा मनमोहक सजीला।

धरती संकुची सी बैठी , मानो बादल के गरजने से कांप रही हो।
पानी बरसने लगी, ठंडी में हाप रही हो।
वन में मोरनी पंख फैलाए,पैर थपथपाये।
सूरज निकलने को, बादल का दरवाजा खटखटाये।

प्रकृति ओशो का बूंद बिखरा पड़ा है।
हीरो के समान फूलों में जड़ा है।
प्रकृति की सुंदरता ,अब कामदेव से भी लड़ा है।
हरियाली का झंडा, पर्यावरण के खड़ा है।

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