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कविता - प्रेम प्रवाह में

प्रेम ध्वनि जब सुनाई दे, रम जाएं मन प्रेम प्रवाह में।
गुन - गुन गाती मन - चयन ,उमड़ - उमड़ कर आकाश के गवाह में।
रंग - बिरंगे फूल खिले शांत वातावरण हरियाली उत्साह में।
कोयल की प्रेम गान झर - झर झरती झरना प्रेम प्रवाह में....

घुंघराले - घुंघराले बाल उसके , सांवला सूरत चन्द्रमा के मुस्कान उसके।
नयन नीलकमल जैसा शुशोभित , हाेंट पंखुड़ियों के समान उसके।
वाष्प बूंदों की वर्षा सुगंधिम फूलों की क्यारियां प्रेम प्रवाह में...

मन हो गई बावरी कहां छिपा है मेरा प्रेम सांवरी।
नयन ढूंढे चैन कहा प्रकृति भी शोभामान न्यारी।
ले जा संदेशा पवन किशोरी उसके बिना न लगे मन बावरी।
तितलियां भी मचल रही भोरें के गान में।
झकझोर वन झूम रही प्रेम प्रवाह में....

मोरनी पंख फैलाए नाच रही ,थप - थप करते पैर ।
मौसम है सुहाना हरियाली बहार में, मत बना मुझे गैर।
चातक के दीन दशा न देखे जाए चकवी की ओर ।
चन्द्रमा को देखते रात्रि ढले,न कभी नीचे का पानी पिए।
स्वातिनक्ष- त्र के एक बूंद में ही दिन कटे देख आकाश की ओर।
प्रेम सुर - ताल गा रही प्रेम प्रवाह में।

प्रेम ध्वनि जब सुनाई दे, रम जाएं मन प्रेम प्रवाह में।
प्रेम ध्वनि जब सुनाई दे,रम जाएं मन प्रेम प्रवाह में।
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