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छत्तीसगढ़ी कविता - देर हे अंधेर नई हे। समाज के प्रति जागरूकता

देर हे अंधेर नई हे , कती ले आही भगवान तेखर फेर नई हे।
जुग - जुग बुढ़त हे ,होवत हे एके दिन एके रात।
बेढ़हा रेंगत हे बेईमानी के रस्ता,हाथी कस मात।
चारी चुगली के होवत हे बढ़ाई ।
घर - घर म होवत हे, महाभारत कस लड़ाई।

देर हे अंधेर नई हे, कती ले आही भगवान तेखर फेर नई हे।

दारू ह पानी बनगे, गुटका पाउच ह चना मुर्रा।
जुआ ह खेल बनगे, कुकुर कस झगड़ा होवाई म उड़ावत हे धूर्रा।
सेठ मन करा पैसा बरस गे, कमजोरहा मन के ऊपर लाठी बरस गे।
साच मनखे लबरा होगे,दोगला ह न्याय करईया बनगे।

देर हे अंधेर नई हे कती ले आही भगवान तेखर फेर नई हे।

कसाई के धजा फहरात हे, चोर लफंगा मजा उड़ात हे।
दू डेटरा होगे त गरभ अभिमान होगे।
आज के लइका सियान होगे।

देर हे अंधेर नई हे कती ले आही भगवान तेखर फेर नई हे।

दू अक्षर पढ़ लीन त अपन आप ल ज्ञानी बतात हे।
करम जानय न मरम अउ खुद ल ध्यानी बतात हे।
सियान के चलवा चलती नन्दा गे।
लइका के बुद्धि म  दिन ह पहा गे।

देर हे अंधेर नई हे कती ले आही भगवान तेखर फेर नई हे।
देर हे अंधेर नई हे कती ले आही भगवान तेखर फेर नई हे।
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