निबंध - हिमालय पर्वत की उत्पत्ति

 हिमालय की उत्त्पति 

हिमालय की उत्पत्ति

परिचय- हिमालय को भगवान शंकर की निवास स्थल कहां जाता है। अर्थात् भगवान शिव अपने अदृश्य रूप में अपार शक्ति के स्रोत से हिमालय पर ही विराजमान है।


 प्राचीन ऐतिहासिक हिमालय का विस्तार


करोड़ों साल हुए , दक्षिण भारत एक  अफ्रीका दूसरी ओर आस्ट्रेलिया से मिला हुआ था। थल का वह अटूट विस्तार हिंद महासागर पर छाया था, दक्षिण अमेरिका तक। उधर  उत्तर में ना केवल उत्तर भारत बल्कि  प्राय: सारा हिमालय और एशिया के अधिकतम भाग जल मग्न थे। उन पर सागर की फेनिल लहरें टूटती थी। तभी हिमालय ना था।

 एकाएक एक दिन पृथ्वी के गर्भ में कुछ हुआ। जलजला आया जमीन सिकुड़ी और फैली। उसकी ऊपरी सतह का अचानक से काया-पलट हो गया। दक्षिण में समुंदर उठा। उसने भारत,अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया को जल द्वारा बांट दिया। उसी भूकंप ने उत्तर को ऊपर फेंका। तब हिमालय की उत्तंग श्रृंखलाएं सागर से उठकर खड़ी हो गई। उसकी वह एवरेस्ट आसमान छूने लगी। जिसकी अभी की इंसानी विजय की गुंज आज भी हवा में भरी है। साथ ही उसके उत्तर और दक्षिण में भी समुंदर ने मैदान उगल दिए। हिम की श्वेत हरी धाराओं से गिरिजाराज ने उन्हें संपन्न किया जो वर्तमान में हिमगिरी तथा हिमालय के रूप में विख्यात हुआ।


हिमालय की विस्तार-


भारतीय विचारों के अनुसार  हिमालय का विस्तार पूरब से पश्चिम समुद्र तक है।  

उत्तर दिशा में गिरिराज हिमालय है जो पूर्व और पश्चिम के समुद्रों में प्रवेश करता हुआ पृथ्वी के मापदंड- सा स्थित है। इस प्रकार हिमालय प्राचीनतम  राय में भारत की उसकी भौगोलिक और राजनीतिक आदर्श सीमा प्रस्तुत करता था, परंतु साधारण तौर से हिमालय का यह मान संसार के भौगोलिक को मान्य नहीं है।

 उन्होंने उसका 1500 मील लंबा विस्तार पश्चिमी में गिलगित  और पूरब में ब्रह्मापुत्र तक माना है। इस प्रकार हिंदुकुश के अलावा ईरानी पठार का एक भाग और पूरब में बर्मा के भी कुछ हिस्से शामिल होते। इस पंद्रह सौ मील लंबे पहाड़ी सिलसिले की चौड़ाई 400 मील है। हिमालय की 6श्रेणियां है। जो पामीर की गांठ से निकलकर पूरब की ओर जंजीरों की तरह बढ़ती गई है ।

 एवरेस्ट की हिमालय की सबसे ऊंची चोटी है। जो पूर्वी श्रृंखला  में है। हा गॉडविन ऑस्टिन की दूसरी आकाश चुम्मी चोटी जरूर पश्चिम में है।

हिमालय की तीसरी श्रृंखला लद्दाख का निर्माण करती है। सिंधु के उत्तर- दक्षिण दोनों और जसकर हिमालय की प्रधान पर्वतमाला है। उसका मस्तक बर्फीली चोटियों से चमकता रहता है। उसी की चोटियां गंगोत्री से नंदा देवी तक शिमला के पहाड़ों से दिखती है।

पीरपंजाल या धौलाधार की श्रेणी बाहरी हिमालय में पड़ती है।जो उसकी पांचवी श्रृंखला है। निचले हिमालय की डल की अंतिम और ठीीी छठी पर्वतमाला है।

जिसमें शिवालिक का विस्तार है। हम इस पंद्रह सौ मील लंबी पर्वत श्रेणी को और भी अधिक सुगम तरीके से बांट सकते हैं ।अगर हम इसके 4 भाग करें तो इसकी गणना इस प्रकार होगी-

 पहला पंजाब- हिमालय 350 मील ,

दूसरा कुमायूं हिमालय 200 मील।

 नेपाल हिमालय 500 मील ।

और चौथा असम हिमालय 450मील।

 पंजाब हिमालय का विस्तार गिलगित से सतलज तक है ।

इसमें अधिकतर 20 हजार फुट से कम ही ऊंची चोटियां हैं ।पर नंगापर्वत इसी विस्तार में है ।उसकी ऊंचाई 26,656 फुट है।कुमायूं  हिमालय की श्रृंखला सतलज से  काली नदी तक चली गई ।

इसी में अधिकतर तीर्थ स्थान है।और धर्मपु त  शिखर है ।नंदा देवी 25,645 फुट ऊंची है। कामेट 25,447 फुट।त्रिशूल 23,360 फुट। 23,19 फुट बद्रीनाथ ,केदारनाथ22,270फुट  और  गंगोत्री 21,700 फुट।

  यमुनोत्री भी इसी श्रृंखला में है।  नेपाल हिमालय का विस्तार सबसे बड़ा है ।काली नदी से सिक्कम तक इसकी चोटियां संसार में सबसे ऊंची है। तिब्बत और नेपाल के संधी पर खड़ा 29,002 फुट एवरेस्ट इसी में है। 

हिमालय की पर्वतमालाएं में छोटी बड़ी अन्नत झीलें है।

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