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कविता - जीने की कला

जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।2

इंसानियत के नाते मानव - मानव में प्रेम जगाओ।
अहिंसा, सत्य , सत्कर्म का बीज लगाओ।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।

निडर होकर अपने तत्पर आगे बढ़ना।
सोनार चाहे कितनों घिसे सोने की तरह चमकना।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।

खुद पर विश्वास मंजिल की चाबी ।
मन में हौसला आगे बढ़ने की जज्बा मिलेगा कामयाबी।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।

मणि पूरे अंधेरे को प्रकाशित करता।
जब एक चमक लों जले ज्ञान का हमारे अंदर,
तभी अज्ञानता का भ्रम मरता।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।

दुनिया को अपनी हिम्मत दिखानी है।
सबसे अलग कुछ कर दिखाने की,
इस मकड़ी के जाल को,
 अंधेरी रात को जड़ से मिटाने की।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।

कुछ खोना है कुछ पाना है,तो कुछ आजमाना है।
इस दुनिया के पहेली को, सरलता से सुलझाना है।

जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।
हंसते हुए जीना है हंसाते हुए चलना।
भले ही कितनों पैर खींचने वाला सामने आए,
अपने सामने आए मुसीबतों से लड़ना।

जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।
जीने की कला करो अच्छाई होगा भला।
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